हमारा देश शिक्षा के लिए प्राचीन समय से विख्यात हैं हमारे देश में अनेक विश्वविद्यालय विद्यालय तथा अनेक संस्थाएं शिक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे रही है आज के आर्टिकल में हम भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे।
नालंदा विश्वविद्यालय पर निबंध Essay on Nalanda university in Hindi
भारत प्राचीन समय से शिक्षा का प्रमुख केंद्र रहा है हमारे देश में अनेक शिक्षित विद्वान हुए हैं जिनसे शिक्षा प्राप्त करने के लिए अनेक लोग विदेश से यहां पर आते थे।
हमारे देश में शिक्षा की व्यवस्था काफी लंबे समय से संघर्ष में रही है। इसी में एक नाम भारत के प्राचीनतम विश्वविद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय का आता है।
नालंदा विश्वविद्यालय वह विश्वविद्यालय है जिसमें महात्मा बुध जैसे विद्वानों ने शिक्षा की प्राप्ति की और चीनी यात्री ने अपने नालंदा विश्वविद्यालय जीवन के बारे में लिखा है।
History of Nalanda University
नालंदा विश्वविद्यालय वर्तमान बिहार में स्थित है नालंदा विश्वविद्यालय पटना से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना पांचवी शताब्दी में की गई इस विश्वविद्यालय के निर्माण में लगभग 10 करोड़ की लागत के साथ इसका निर्माण संभव हुआ।
नालंदा विश्वविद्यालय के निर्माण में हजारों की तादाद में मजदूरों ने इसका निर्माण किया यह विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म के संस्थापक तथा गुरु महात्मा बुध को समर्पित किया गया है। इसके बाद सम्राट अशोक ने इसकी मरम्मत करवाई।
नालंदा अपने समय का सबसे प्रभावशाली तथा शिक्षा से पूर्ण विश्वविद्यालय था इस विश्वविद्यालय में लगभग 10000 से भी अधिक विद्यार्थी अध्ययन करते थे। तथा 2,000 से अधिक शिक्षक अध्यापन का कार्य करते थे।
इस विश्वविद्यालय के कारण प्राचीन समय में ही भारत शिक्षा की दृष्टि में सबसे श्रेष्ठ देशों में गिना जाने लगा। इस विश्वविद्यालय का भवन काफी भव्य और विशाल था इसके निर्माण के बाद अनेक गुप्त सम्राटों ने सहयोग किया जिसमें सर्वप्रथम कुमारगुप्त ने इस विश्वविद्यालय को सहयोग दिया।
इस विश्वविद्यालय के शिक्षा के स्तर को देखते हुए यह विश्व भर में प्रसिद्ध हो गया और इस विद्यालय में चीन तिब्बत नेपाल भूटान म्यांमार बांग्लादेश से अनेक विद्यार्थी अध्ययन करने के लिए इस विद्यालय में आते थे।
इस विश्वविद्यालय में साथ साथ रहने की व्यवस्था भी थी इसी कारण इसमें अनेक विदेशी निवास करते थे और शिक्षा ग्रहण करते थे इस विश्वविद्यालय का भवन बहुत ऐतिहासिक और विशालतम था इस विश्वविद्यालय के चारों ओर चार दिवारी का निर्माण किया गया है।
इस विश्वविद्यालय में अनेक जलाशय तथा रहने की व्यवस्था के लिए कमरे बनाए गए थे। इस विश्वविद्यालय में लगभग 300 से अधिक कक्षा कक्ष शामिल थे। इस विश्वविद्यालय का भवन आकाश की ऊंचाइयों में था।
इस विश्वविद्यालय की सबसे अहम बात इसके पुस्तकालय थे जो तीन मंजिल में बने हुए थे और इन पुस्तकालय में लगभग तीन लाख से अधिक पुस्तकें व्यवस्थित रूप से जमा की गई थी इसीलिए पुस्तकों का अध्ययन करना और भी आसान था।
इस विद्यालय में प्रवेश करने के लिए कठोर इम्तिहान मैं उत्तीर्ण होना पड़ता था। इस विद्यालय में प्रवेश करने के लिए प्रवेश परीक्षा का आयोजन हर साल किया जाता था जिसमें हजारों की संख्या में विद्यार्थी भाग लेते थे और उनमें से कुछ गिने- सुने प्रतिभाशाली विद्यार्थी उत्तीर्ण हो पाते थे।
नालंदा विश्वविद्यालय की शिक्षा और उत्कृष्टता से अनेक विदेशी शिक्षा प्राप्त करते थे और कुछ ऐसे भी अपवाद थे जो ऐसी शिक्षा स्तर से बाज नहीं आते थे इसी कारण इस विश्वविद्यालय पर अनेक बार आक्रमण किए गए। प्रत्येक बार इस विश्वविद्यालय को बचा लिया गया।
ईसाई धर्म का कट्टर समर्थक तथा खिलजी वंश का शासक बख्तियार खिलजी नालंदा विश्वविद्यालय से प्रभावित होकर इस विश्वविद्यालय को हमेशा हमेशा के लिए 12 वीं शताब्दी में नष्ट कर दिया। इस विश्वविद्यालय शिक्षा स्तर में काफी क्षति पहुंची। इस विश्वविद्यालय मैं 1292 में बख्तियार खिलजी द्वारा आग लगवा दी गई और लगभग 3 महीना तक इस विश्वविद्यालय में आग लगी रही।
इस विश्वविद्यालय में बख्तियार खिलजी ने आग लग जाने से लेकर एक कथा प्रचलित है माना जाता है कि बख्तियार खिलजी एक बार काफी बीमार स्थिति में आ गया था। बख्तियार खिलजी अपने वेदों पर काफी भरोसा करता था और उन्हें सबसे श्रेष्ठ मानता था।
पर इस बार जब खिलजी बीमारी से अधिक प्रभावित हुआ और उनका इलाज करने में उनके प्रतिभाशाली कहे जाने वाले वेद भी इनका इलाज करने में संभव नहीं हुए। तभी उन्होंने सलाह के अनुसार नालंदा विश्वविद्यालय के सुप्रसिद्ध अध्यापक श्री राहुल भद्र जी से परामर्श कर अपने इलाज के लिए प्रेरित हुए।
बख्तियार खिलजी यह चाहता था कि वह किसी भारतीय दवाई के बजाए अपने देश की दवाई से अपना इलाज करें इसलिए उसने राहुल भद्रसही से वादा किया था कि वह हिंदुस्तानी दवाई के बिना अपना इलाज कराना चाहता है और यदि ऐसा नहीं हुआ तो वह राहुल भद्र जी को जान से मार देगा।
राहुल जी लगभग 15 दिन की अवधि के बाद खिलजी के पास एक कुरान लेकर पहुंचे जिसमें उन्होंने कुरान के पन्नों पर दवाई लगा दी थी और खिलजी को हर रोज उसके 10 या 15 पन्नों का नियमित अध्ययन करने के लिए कहा जिससे उनका इलाज संभव हो सका।
बख्तियार खिलजी अपने मतलब को पूरा करने के बाद हिंदुस्तानी शिक्षा के स्तर को देखकर काफी चिंतित हुआ और उसने फैसला किया कि वह हिंदुस्तान की शिक्षा को बर्बादी की ओर धकेल देगा। इस फैसले के बाद 12 वीं शताब्दी मैं बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को जला दिया।
बख्तियार खिलजी को अपने बुरे कर्म का फल जल्द ही मिला और अगले कुछ ही सालों में उनके सैनिकों द्वारा ही उन्हें धोखे से मार दिया गया। बख्तियार खिलजी कि इस मूर्खता को भारत कभी माफ नहीं कर सकता।
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