स्वतंत्रता दिवस पर भाषण 2022 Short speech on independence day in hindi

नमस्कार दोस्तों आज हम स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त पर शार्ट और सरल भाषा में भाषण प्रस्तुत कर रहे हैं जिसका प्रयोग आप प्रतियोगी परीक्षाओं या विद्यालय के वार्षिक उत्सव में कर सकते हैं। स्वतंत्रता दिवस पर भाषण Short speech on independence day in hindi Speech-1  मां सरस्वती के चरणों में नमन प्रधानाचार्य जी महोदय शिक्षक गण महोदय गांव से पधारे हुए ग्राम वासियों मेरे साथ पढ़ने वाले छोटे बड़े भाइयों और बहनों सबसे पहले आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। जैसा कि आप जानते हैं कि आज हम 75 वे स्वतंत्र दिवस मनाने के लिए एकत्रित हुए हैं आज से ठीक 75 साल पहले हमारा देश ब्रिटिश सरकार से मुक्त हुआ था. 15 अगस्त 1947 को हमारा देश 200 साल की अधीनता के बाद एक स्वतंत्र देश बना हमारे देश की स्वतंत्रता के पीछे अनेक वीर सपूतों ने अपने बलिदान देकर देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी जिसमें महात्मा गांधी चंद्रशेखर आजाद भगत सिंह गंगाधर तिलक राजेंद्र प्रसाद सुखदेव राजगुरु आदि अनेक वीरों ने अपनी आजादी के लिए देश के लिए बलिदान दे दिया।  उन वीरों को याद करने के इरादे से स्वतंत्रता दिवस...

झीलों की नगरी उदयपुर city of lakes udaipur |

 झीलों की नगरी उदयपुर


मैं विकास हूं मैं उदयपुर में रहता हूं। आइए आपको मैं झीलों की नगरी उदयपुर के बारे में बताता हूं। उदयपुर नगर अरावली पर्वतमाला के बीच स्थित है। इस नगर के चारों ओर झीले ही झीले हैं। पिछोला, स्वरूपसागर, फतहसागर, उदयसागर, दूधतलाई, जनासागर आदि झीलें। इनके कारण ही तो उदयपुर को झीलों की नगरी कहा जाता है। बरसाती ऋतु में तो इन झीलों की छटा और भी बढ़ जाती हैं। यह झीले कश्मीर से होड करती है। अंतः कई लोग इस नगर को राजस्थान का कश्मीर कहते हैं।

फतहसागर के बीच बना है नेहरू उदयान। इन झीलों के पानी मैं ही जग निवास तथा जग मंदिर नाम के जल महल भी है। इन झीलों मे पर्यटक नौका विहार का आनंद लेते हैं। रात्रि के समय जब यह उद्यान तथा यह मेल विद्युत के प्रकाश में जगमगाते हैं। तो उनकी शोभा देखते ही रहते हैं।

झीलों की नगरी उदयपुर


यह विशेष बात है कि यह झीले किस प्रकार बनी है की एक झील का पानी दूसरी झील में आता है अतः यह झीलें जल संरक्षण का उत्कृष्ट उदाहरण हैं । इस झील में ही उत्तर की ओर एक सौर वैद्य साला भी बनी हुई है जिसमें वैज्ञानिकों द्वारा सूर्य की गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है।

 उदयपुर नगर में कई ऐतिहासिक तथा दर्शनीय स्थल है। पिछोला झील के किनारे महाराणा प्रताप के वंशजो का भव्य मेल है। इसमें कांच का काम तथा चित्रकारी अद्वितीय है। फतहसागर के किनारे पूर्व की ओर मोती मगरी नाम का प्रसिद्ध ऐतिहासिक स्थल है। इस पर चेतक घोड़े पर सवार महाराणा प्रताप की विशाल प्रतिमा है। उसी परिसर मैं महाराणा प्रताप के सहयोगी हकीम खान सूरी, भामाशाह, भीलूराणा पूजा, मन्ना, जाला आदि की प्रतिमाएं भी है।

झीलों की नगरी उदयपुर


ध्वनि प्रकाश कार्यक्रम के माध्यम से यहां मेवाड़ की गौरव गाथा को दर्शाया जाता है। इससे दर्शकों में राष्ट्रप्रेम की भावना का संचार होता है। याद दिन-रात पर्यटको का आना-जाना बना रहता है। फतहसागर की पास उत्तर में स्थित एक पहाड़ी पर नीमज माता का सुंदर मंदिर है। यहां प्रतिदिन श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है इस पहाड़ी के पीछे प्रताप गौरव केंद्र बना हुआ है। यहां महाराणा प्रताप की 57 फिट ऊंची प्रतिमा है। यह प्रताप की 57 वर्ष की आयु में स्वर्गवास होने की याद दिलाती है। यहां एक थिएटर भी है। इसमें महाराणा प्रताप के जीवन संघर्ष से जुड़ी एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी दिखाई जाती है। इसके अतिरिक्त यहां कुछ अन्य प्रतिमाएं भी लगी हुई है। इनके साथ उनका संक्षिप्त परिचय भी लिखा है। यह एक प्रेरणा स्थल है जहां विशाल भारत गरिमामई राजस्थान तथा गौरवपर्ण मेवाड़ का दिव्य दर्शन होता है।

फतह सागर के पश्चिम में एक पहाड़ी पर अज्जनगढ़ का किला है। इससे महाराणा सज्जन सिंह ने बनवाया था। हाल ही में राजस्थान सरकार द्वारा इसस  वन्य क्षेत्र का अभयारण्य घोषित किया गया है। इससे आगे कुछ ही दूरी पर पश्चिम में शिल्पग्राम है। यहां लोग कलाओं व विकास के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यहां प्रतिवर्ष दिसंबर माह मैं एक मेला लगता है। इसमें देश-विदेश के कई कलाकार अपनी कलाओं का प्रदर्शन करने आते हैं

झीलों की इस नगरी में गुलाब बाग तथा शैलियों की बाड़ी नाम से दो सुंदर बगीचे हैं। गुलाब बाग में भांति भांति के गुलाब खिलते हैं। इनकी भीनी महक से दर्शकों का दिल बाग बाग हो जाता है। या एक चिड़िया घर भी है। रंग बिरंगी चिड़िया ओं का चहकना सबको आनंदित कर देता है। बच्चों की रेलगाड़ी भी है। आप सो तो इसमें यात्रा कर सकते हैं किंतु टिकट लेना मत भूलना इसके अलावा यहाँ पहले भालू, शेर, चीते, बंदर आदि भी थे।

यहां शेर की दहाड़े सुनी जाती थी हिरण को कुलाचे भरते देखकर बच्चे खुश होत थे किंतु जब से सज्जनगढ़ को अभ्यारण घोषित किया गया है सब वन्य प्राणियों को यहां स्थानांतरित कर दिया है। शैलियों की बाड़ी मैं जब फव्वारे चलते हैं जन्नत का नजारा लगता है। इन झीलों के किनारे वर्ष में दो बार मेले लगते हैं। हां हरियाली अमावस्या तथा गणगौर के अवसर पर इन मेलों में सारा शहर उमड़ पड़ता है। पास पड़ोस के लोगों की भीड़ भी जमा हो जाती है। पाॕव रखने तक की जगह नहीं मिलती है। मेलों में यदि आप आओ तो सकरी, डॉलर झूलों में जरूर झूलना।


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