वन्य जीव एवं संरक्षण पर निबंध
Essay on Wildlife and Conservation 2022
हेल्लो दोस्तों आज का हमारा निबंध वन्य जीव एवं संरक्षण पर हैं। आप वन्य जीव एवं संरक्षण के बारे में संपूर्ण जानकारी के लिए हमारे इस आर्टिकल को पढ़ें हमारे इस आर्टिकल में वन्य जीव एवं संरक्षण की संपूर्ण जानकारी दी गई है।
वनों का महत्व
वन प्रकृति के द्वारा प्रदत्त अमूल्य उपहार है। पेड़ पौधे हमें शुद्ध दवा देने के साथ वर्षा में भी सहयोग करते हैं। पेड़ पौधे वन्यजीवों का आश्रय प्रदान करते हैं। वन प्रकृतिक सुंदरता के साथ ही जलवायु का सम बनाते हैं। वन आजीविका के साधन भी होते हैं। हमें पेड़ पौधों की सेवा करनी चाहिए और ज्यादातर पेड़ पौधे लगाने चाहिए जिससे हमें कई प्रकार के गुण मिलते हैं।आपके घर एवं आसपास कोई छोटे पेड़ पौधे वो तो उन्हें समय-समय पर पानी पिलाए ताकि हमें शुद्ध हवा मिल सके।
वनों का आर्थिक महत्व उन से प्राप्त होने वाले उत्पादन से होता है। राजस्थान के वनों से कई तरह की जड़ी बूटियां प्राप्त होती है जिससे कई तरह के रोग जड़ी बूटियों से मिट जाते हैं यह एक आयुर्वेदिक देसी इलाज है। राजस्थान के वनों में इमारती लकड़ी, ईधन की लकड़ी, तेंदूपत्ता, बॉस, गोद, घास और कई प्रकार की औषधियां प्राप्त होती है।
वन्य जीव अभयारण्य
अभयारण्य का अर्थ 'अभय ' अर्थात ऐसा वन वन्य जीव सुरक्षित घूम सके। इसी उद्देश्य के लिए सरकार द्वारा वन क्षेत्र को सुरक्षित किया जाता है। राजस्थान में कई वन्य जीव अभ्यारण्य है जिसमें कुछ प्रमुख वन्य जीव अभ्यारण्य है -
1. राष्ट्रीय मरू उद्यान वन्यजीव अभयारण्य
यह अभयारण्य जैसलमेर और बाड़मेर जिले में होते हैं इसमें वन्यजीव गोडावण (राज्य पक्षी) भेड़िया सियार लोमड़ी सिंकारा नीलगाय आदि पाए जाते हैं।
2. केला देवी वन्यजीव अभयारण्य
यह सवाई माधोपुर व करौली में होते हैं इसमें वन्यजीव बघेरा भेड़िया चीतल खरगोश हाथी पाए जाते हैं।
3. कुंभलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य
यह राजसमंद पाली उदयपुर में पाए जाते हैं इसमें वन्यजीव बाघ भालू सिंकारा नीलगाय आदि पाए जाते हैं।
4. फुलवारी की नाल वन्यजीव अभयारण्य
यह अभयारण्य उदयपुर जिले में पाया जाते हैं इसमें वन्यजीव बाग शीतल सियार भेड़िया साभर आदि पाए जाते हैं।
5. सरिस्का वन्यजीव अभयारण्य
यह अभयारण्य अलवर में है इसमें वन्यजीव बाघ जरख सांभर चीतल आदि पाए जाते हैं।
6. टॉडगढ़ रावली वन्यजीव अभयारण्य
यह अभयारण्य राजसमंद अजमेर पाली में पाए जाते हैं इसमें वन्यजीव तेंदुआ भालू बाज सियार रीछ नीलगाय आदि पाए जाते हैं।
8. माउंट आबू वन्यजीव अभयारण्य
यह अभयारण्य सिरोही में पाए जाते हैं इसमें वन्यजीव रीछ जंगली मुर्गा सिंकारा शीतल साबर आदि पाए जाते हैं।
9. रामगढ़ विषधारी वन्यजीव अभयारण्य
यह अभ्यारण बूंदी जिले में पाया जाता है इसमें वन्यजीव विषधारी साँप बाघ रीछ आदि पाये जाते है
10. जमवारामगढ वन्यजीव अभयारण्य
यह अभयारण्य जयपुर जिले में पाए जाते हैं इसमें वन्यजीव जनक सियार बघेरा भेड़िया आदि पाए जाते हैं।
11. राष्ट्रीय संभल घडियाल वन्यजीव अभयारण्य
यह अभयारण्य कोटा सवाई माधोपुर करौली धौलपुर (चंबल नदी के साहारे) पाया जाता है इसमें वन्यजीव घड़ियाल भेड़िया सियार लोमड़ी आदि पाए जाते हैं।
वन संरक्षण
राष्ट्रीय वन नीति वर्ष 1952 के अनुसार कुल भूभाग का लगभग 33% वन क्षेत्र होना चाहिए। राजस्थान राज्य की वन नीति 2010 में राज्य के संपूर्ण भूभाग के 20% को प वृक्षाच्छादित करने का लक्ष्य रखा गया था ताकि परिस्थितिकी एवं पर्यावरण संतुलन बने रहने के साथ-साथ प्रदेश वासियों के सामाजिक आर्थिक उत्थान के लक्ष्यों की प्राप्ति भी संभव हो सके। लेकिन राजस्थान में वन क्षेत्र लगभग 10% ही है। वनों की अंधाधुन कटाई एवं जागरूकता के अभाव के कारण राजस्थान में आरक्षित वन का क्षेत्रफल समय के साथ कम हुआ है। राजस्थान में वनों का विस्तार एवं संरक्षण प्रत्येक नागरिक का दायित्व है।
वन संरक्षण के उद्देश्य से राज्य सरकार एवं अनेक संस्थाओं द्वारा जनमानस में जागरूकता हेतु अभियान चलाए गए हैं। वनों में लकड़ी काटने पर पाबंदी लगाई गई है। वृक्षारोपण सारा गाय विकास एवं सामाजिक वानिकी के कार्य किए गए हैं। जोधपुर में केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थाएं एवं शुष्क वन अनुसंधान संस्थान स्थित है इस संस्थान का उद्देश्य शुष्क एव
अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों में वनों एवं वन्यजीवों के विकास हेतु अनुदान करना है।
यह भी जाने
राजस्थान के जोधपुर जिले में खेजड़ली गांव के ठेकेदारों द्वारा वर्षा को काटा जा रहा था उस समय उन्हें बचाने के लिए उस क्षेत्र के लोगों ने विरोध किया। अमृता देवी के नेतृत्व में 1730 विश्व में 363 स्त्री व पुरुषों ने वनों को बचाने के लिए वृक्षों से लपेटकर बलिदान दिया था। अमृता देवी की स्मृति में यहां एक उम्र उपवन स्थापित किया गया है। प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को यहां विश्व का एकमात्र वृक्ष मेला लगता है।
वनों के प्रकार
राजस्थान राज्य में कुल क्षेत्रफल का लगभग 10 वा भाग वन क्षेत्र है। राज्य में सर्वाधिक वन क्षेत्र उदयपुर जिले तथा सबसे कम वन क्षेत्र चुरू जिले में पाया जाता है।
राजस्थान के वनों को तीन भागों में विभाजित किया गया है -
1. आरक्षित वन :- यह वन सरकारी नियंत्रण में आते हैं। पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण इस क्षेत्र में पशु चराने वह लकड़ी काटने पर प्रतिबंध लगाया गया है। यह कुल वन क्षेत्र के तिहाई से अधिक है।
2. सुरक्षित वन :- यह वह भी सरकारी नियंत्रण में आते हैं। कुछ नियमों के साथ इस क्षेत्र में लकड़ी काटने व पशुओं को चराने की अनुमति दी जाती है। इस प्रकार के वन कुल वन क्षेत्र के आधे से अधिक क्षेत्र में फैले हुए हैं इस वन में लकड़ी भी काट सकते हैं वह पशु भी चरा सकते हैं। इस वन में किसी भी प्रकार का प्रतिबंध नहीं है।
3. अवर्गीकरण वन :- इस श्रेणी के वन में पशु चराने वाला कड़ी काटने पर किसी भी तरह का सरकारी प्रतिबंध नहीं होता है।
भौगोलिक दृष्टि से वनों का वर्गीकरण
अरावली पर्वतमाला राजस्थान को दो भागों में विभक्त करती हैं।धरातलीय स्वरूप व जलवायु वर्षा की मात्रा एवं मिट्टियों की भिन्नता वनस्पति को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारण है। राजस्थान में भौगोलिक दृष्टि से तीन प्रकार के प्रमुख वन पाये जाते हैं
1. उस कटिबंधीय कटीले वन -
यह वन राजस्थान के शुष्क एवं अर्द्धशुष्क बागों में पाए जाते हैं। यह बीकानेर शुरू जैसलमेर बाड़मेर नागौर जोधपुर सीकर झुंझुनू जालोरी आदि जिलों में पाए जाते हैं। इन वनों में झाड़ियों एवं कटीली वृक्ष पाए जाते हैं मुख्य वृक्ष रोहिडा खेजड़ी धौकडा बेर बबूल केर नींम आदि है। इस मरुस्थलीय वनस्पति को मरुधर भी कहा जाता है।
विशेषताएं
- यहाँ तापमान अधिक एवं वर्षा कम होती है।
- इस क्षेत्र में वृक्षों की पत्तियां छोटी होने के कारण वापसीकरण कम मात्रा में होता है।
- पेड़ों की जड़ें गहरी होती है जिनसे यह जमीन के काफी नीचे से पानी प्राप्त कर सकते हैं।
खेजड़ी बहु उपयोगी वृक्ष है। खेजड़ी को राजस्थान में कल्पवृक्ष भी कहा जाता है। यह राज्य वृक्ष भी है। रोहिडा राजस्थान का राज्य पुष्प है। सेवण घास अत्यत पोस्टिक घास है जो जैसलमेर में सर्वाधिक पाई जाती हैं।
2. उस कटिबंधीय सुखल पतझड़ वन-
इन वनों को मानसूनी वन बी कहते हैं ऐसे वन मुख्यत बांसवाड़ा डूंगरपुर उदयपुर चित्तौड़गढ़ कोटा बारा झालावाड़ अलवर अजमेर जयपुर सवाई माधोपुर करौली बूंदी एव टोंक जिलों में पाए जाते हैं। इन वनों में सागवान बरगद के दूध महुआ गूलर धौक ढाक साल सीताफल बॉस आंवला आब नेम शीशम आदि वृक्ष पाए जाते हैं। इन वनों की अधिकांश लकड़िया मजबूत होती है। इन वनों के पेड़ ग्रीष्म काल मैं अपनी पत्तियां गिरा देते हैं। इन पेड़ों की लकड़ियों से कई तरह की दवाइयां बनती है।
3. अर्द्ध उष्णकटिबंधीय सदाबहार वन
यह वन सदैव हरे-भरे दिखते हैं इसलिए इन्हें सदाबहार वन कहते हैं यह वन आबू पर्वतीय क्षेत्र में ही पाए जाते हैं जहां पर ज्यादातर बारिश होती रहती है। ये वन पहाड़ी के ऊंचाई वाले भागों में ही पाए जाते हैं। इन वनों में मुख्य रूप से आम बॉस सागवान आदि वृक्ष पाये जाते हैं।
राष्ट्रीय उद्यान
राष्ट्रीय उद्यान वन्यजीव अभयारण्य एवं सुरक्षित क्षेत्र हमारी प्राकृतिक वनस्पति एवं वन्य जीवो को सुरक्षित रखने के लिए बनाए जाते हैं। राजस्थान के तीन राष्ट्रीय उद्यान है -
1. केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान - केवलादेव घना पक्षी अभयारण्य भरतपुर जिले में स्थित है। जहां पर साइबेरियन, के्न, बगुले, बया,कोयल, बटेर, आदि पक्षी पाए जाते हैं।
2. रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान- यह सवाई माधोपुर जिले में है। यहां बाघ भालू शीतल सांभर नीलगाय मगरमच्छ याद पाए जाते हैं। यह राष्ट्रीय उद्यान भारतीय बाघ के लिए प्रसिद्ध है।
3. मुकुदरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान- यह कोटा और चित्तौड़गढ़ जिले में फैला हुआ है। या बाग जरख,रीछ गीदड़ भेड़िया साभर चीतल नीलगाय चिकारा सियार आदि वन्य जीव पाए जाते हैं।
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